एक बार एक नाले के किनारे एक चिडिया पानी पी रही थी। इतने में एक चींटी पेड़ की टहनी से गिरकर नाले में जा पडी।
“चिड़िया ने देखा- चींटी पानी में डूब रही है। उसने झट से किनारे पर लगी बेल से एक प्पत्ता तोडा ओर चींटी के पास फेंक दिया।
चींटी झट से उस पत्ते पर सवार हो गई। एक लहर आई। पत्ता किनारे पर आ लंगा, और चींटी बच गई। चींटी ने मन ही मन चिडिंया का धन्यंवाद किया और वहीं पेड़ के नीचे रहकर अपना भोजन खोजेने लगी।
एक दिन चिडिया पेड की शाखा पर बैठी थी। थोड़ी देर में एक शिकारी आया। उसने चिडिया पर
बन्दूक का निशाना लगाया।
चींटी ने सोचा कि चिडिया ने मेरां जीवन बचाया था। अब वह बेचारी संकट में फँसी है। मुझे भी उसके उपकार का बदला चुकाना चाहिएं। यह सोचकर चींटी ने झट से ‘शिकारी के पॉव पर
जोर से डंक मारा।
अंचानकं डंक लगने से शिकारी का बदन हिल गया, हाथ काँप गए और उसका निशाना चूक गया। चिडिया बच गयी।
बन्दूक॑ की ठाँय की आवाज सुनकर चिंडियग़ा उड़ गई इस तरह चींटो ने चिडिया के एहसान का बदला हाथों-हाथ चुका दिया।
शिक्षा-छोटे-छोटे एहसान का बदला चुकाते हैं। छोटों को छोटा समझकर उनकी उपेक्षा न करें। कृतघ्न मनुष्य पापी होता है।