Ekta Mein Bal Story In Hindi With Moral
एक गाँव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। समय निकलता गया तो उस व्यक्ति का परिवार तो बढ़ता गया, किन्तु उसके साथ ही निर्धनता भी बढ़ती गई। उस गाँव में जब उसकी आजीविका
के लिए कुछ नहीं रहा तो उसने सोचा कि अब कुछ और उपाय करना चाहिए। एक दिन ब्राह्मण ने अपने परिवार के लोगों से कहा, “अब हमारा गुजारा वहाँ नहीं होता, चलो कहीं अन्यत्र चलें। ”
इस प्रकार परिवार वहाँ से चलने लगा। उसको जाते देख पड़ोसी ने पूछा, “पण्डितजी! किधर की तैयारी हो रही हे?”

ब्राह्मण ने अपना मन्तव्य बता दिया। – Story In Hindi
चलते चलते एक जंगल में रात पड॒ गई। उन दिनों रेलगाई आदि का प्रचलन नहीं हुआ था। पैदल ही यात्रा करनी पड़ती थी जंगल में एक पेड के नीचे परिवार ने डेरा डाला तो ब्रहामण देवता ने अपने पुत्र-पुत्रियों को कहा, “जाओ, कुछ खाने- का प्रबन्ध करो।”
सब प्रबन्ध करने में लग गए। कोई लकड़ी लाया, कोई पानी लाया, किसी ने चूल्हा बनाया आदि-आदि। जिस वृक्ष के निचे उन लोगों ने डेरा डाला था। उसकी शाख पर बैठा एक पक्षी यह सब देख रहा था। अन्त में जब उससे नहीं रहा गया तो उसने कहा, “ भोले ब्राह्मण! तुमने यह सब तो इकट्ठा कर लिया, किन्तु पकाने के लिए तो कुछ है ही नहीं।
तुम लोग खाओगे क्या?”
ब्राह्मण के बडे लड॒के ने कहा-कुछ न मिला तो घास की रोटी पकाकर खा लेंगे। पक्षी समझ गया कि परिवार भूखा हे। पक्षी ने सोचा, परिवार धार्मिक और पुरुषार्थी है फिर बोला-“ में तुम्हें एक स्थान बताता हूँ, वहाँ तुम्हें अपनी मनचाही वस्तु मिल जाएगी।
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ब्राह्मण बोला, “बताओ पक्षी महाराज! कहाँ है वह स्थान?”
पक्षी ने कहा-““ दूर नहीं है। वह जो समाने बरगद का पेड है, उसके पास जा कर उस स्थान को खोदो। वहाँ तुम्हें बहुत कुछ मिलेगा।”
उत्सुकता तो थी ही। सबने मिलकर उस स्थान को खोदा। देखा तो वहाँ एक बहुत बड़ा कोप हे। स्वर्णाभूषण ओर मुद्राएँ पडी थीं। ब्राह्मण परिवार ने वह सब समेटा और अगले दिन वापस गाँव को जा पहुँचा।
पडोसी ने उन्हें वापस आते देख पूछा, “पण्डितजी! आप तो कह कर गए थे कि आप परदेश जा रहे हैं, फिर लौट किस प्रकार आए? कुशल तो हें न?”
Unity Is Strength Story In Hindi
पण्डितजी स्वभाव के भोले तो थे ही उन्होंने अपने पड़ोसी को अपने सम्पन्न बनने की कहानी सुना दी। पडोसी के मन में लालच आया। उसने बार-बार उस कहानी को सुना। उसका आशय था कि वह भी इसी प्रकार जाकर रात-रात में लखपति बन जाए। पडोसी ने वह स्थान भी किसी प्रकार से जान लिया।
अगले दिन दूसरा ब्राह्मण भी लालच के वशीभूत होकर जंगल की ओर चल दिया। उसने भी उसी वृक्ष के नीचे डेरा लगा दिया। वृक्ष पर बैठा वह पक्षी उन्हें देख रहा था। शाम होने लगी।
ब्राह्मण ने अपने पुत्र से कहा जाओ भोजन का प्रवन्ध करो। बड़े पुत्र को लकड़ी के लिए भेजा। उसने मना कर दिया। दूसरे को पानी के लिए भेजा। उसने भी मना कर दिया। फिर ब्राह्मण स्वय गया और भोजन का प्रबन्ध करने लगा। किसी तरह से उसने लकडी , पानी, आग का प्रबन्ध किया। उनके पास पकाने को कुछ नहीं था।
पक्षी अच्छी तरह देख रहा था। उसने पूछा कि आप लोग क्या खाओगे, आपके पास तो कुछ भी नहीं।
ब्राह्मण के बडे पुत्र ने कहा कि हम तो तुम्हें मारकर खाएँगे।
पक्षी बोला कि “ तुम मुझे नहीं मार सकते। मुझे मारकर खाने का सामर्थ्य तुम लोगों में नहीं है। तुम अपने भोजन के लिए लकड़ी, पानी, आग आदि का प्रबन्ध नहीं कर सके तो तुम मुझे क्या मारोगे?”
ब्राह्मण बोला तो हमें भी वह खजाना बता दे जिसे लेकर हम वापस गाँव लोट जाएँ।
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पक्षी बोला, “खजाना पाने की एकता, सहयोग और पुरुषार्थ केवल पहले ब्राह्मण में थे। आप में नहीं है। उसे उसका फल प्राप्त हो गया। पर तुम लोगों में तो एकता का नाम तक नहीं। तुम अपने-अपने कर्त्तव्य से दूर हो, अधार्मिक हो, लालची हो, आलसी हो। “
इस. प्रकार खाली हाथ बह ब्राह्मण वापस गाँव लौट आया। इससे उसे लज्जा व ग्लानि हुई और उन्हें अपने कर्त्तव्य का बोध. हुआ।
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Moral शिक्षा-एकता, सहयोग, पुरुषार्थ और धार्मिकता युक्त व्यक्ति ही जीवन में सफलता पाता हे। ऐसे ही व्यक्ति को दूसरों का सहयोग मिलता हेै। स्वार्थी को नहीं। है