एक बार दो कुत्ते इधर-उधर से एक वृक्ष के नीचे आ पहुँचे गर्मी से घबराएं हुए थे। वृक्ष की शीतल छाया पाकर बैठ गए और आपस में कहने लगे कि भाई अब तो हमारी जाति में एकता का श्रस्ताव पास हो गया है
इसलिए हम दोनों को एक दूसरे से प्रेम भरी बातें करनी चाहिएँ और कभी एक दूसरे पर न हम भूंके न गुरविं; अब लड़ाई-भिडाई बन्द रहा करेगी।
इस बात को थोडा ही समय हुआ था कि उसी वृक्ष पर बैठी हुई चील के मुख से मांस का एक टुकड़ा भूमि पर गिर पड़ा। बस, उसे देख दोनों कुत्ते उठाने को झपटे और आपस में लड़ने लगे।
शिक्षा-ठीक यही दशा स्वार्थी मित्रों की है। जब तक स्वार्थ सामने नहीं होता तब तक तो मित्र भाव रहता है और जहा स्वार्थ सामने आया कि मित्रता टूट गई। आज देश में राजनीति में ऐसी ही स्वार्थमय मैत्री निभाई जा रही है। इसके कारण साधारण जन भी प्रभावित हो रहे हैं। अत: स्वार्थ त्यागने से ही प्रेम, मेल और एकता रहती है।